जब दिल में काश का साया नही था,
वो बचपन मेरा जाया नही था..
वो, वो दौर् था जब आँखो मे निंद
और सपने साथ साथ बैठते थे;
जब दिन मे, "हम होंगे कमयाब"
के नारे जोर से लगते थे ....
बस्ता भलेही भारी था ,
पर मन हमेशा हलका रहता था ;
पैसा हो या ना हो,
पर सुकून हमेशा रहता था....
हो या ना हो कोई साथ, नही थी किसी की चाहत
2-4 दोस्त मिल जाये किस्सो के साथ,
इसी मे थी अपनी राहत.!
ना किसी का तान्हा सूने ना जिम्मेदारियो का बोझ ;
मस्ती करना एक ही काम था,
गालिया खाते थे रोज ....
बीत गया वो दौऱ, रह गई बस यादे ,
ना खुद के लिये वक्त हैं , ना होती किसी से बाते...
भूल गये अब सब, वो दौऱ पीछे छुट गया ;
अब समझ आता हैं - बचपन ही थी जन्नत,
लेकीन अब बचपन भी हमसे रूठ गया !!!
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